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भगवान श्री कृष्ण के धनवान मंदिरों में से एक राजस्थान का सांवरिया सेठ मंदिर : { महान् भक्त भोलाराम गुर्जर ..}2023

भगवान श्री कृष्ण के धनवान मंदिरों में से एक राजस्थान का सांवरिया सेठ मंदिर : { महान् भक्त भोलाराम गुर्जर ..}


जहां व्यापारी भगवान के साथ करते हैं पार्टनरशिप!

यह सच है, व्यापारी भगवान को कुछ प्रतिशत की पार्टनरशिप देते हैं। व्यापार में लाभ होने पर भगवान का हिस्सा उन्हें दे दिया जाता है।ऐसा ही एक प्रसिद्घ मंदिर राजस्थान के चित्तौरगढ़ जिले में उदयपुर हवाई अड्डा से 65 किलोमीटर दूर मंडफिया नामक स्थान में स्थित है। जिन लोगों को व्यापार में बार-बार नुकसान हो रहा होता है वह इस मंदिर में आकर भगवान सांवरिया सेठ को अपना बिजनेस पार्टनर बना लेते हैं। नया कारोबार शुरू करने वाले व्यापारी भी किसी भी प्रकार की समस्या से बचने के लिए भगवान को पार्टनर बनाने यहां आते हैं। मंदिर में विराजमान सांवरिया सेठ भगवान श्री कृष्ण हैं। भगवान श्री कृष्ण के इस विग्रह के विषय में मान्यता है कि यह वही विग्रह है जिसकी भक्ति संत नरसी मेहता करते थे। नरसी मेहता ने ही 'वैष्णव जन ते तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे' नामक भक्ति गीत की रचना की थी जो महात्मा गांधी का प्रिय भजन है।संवारिया सेठ के अलावा व्यापारी राजस्थान में स्थित मेंहदीपुर बालाजी और सालासर बालाजी को भी अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं। उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी, उड़ीसा स्थित जगन्नाथ जी को भी व्यापारी कारोबार में लाभ के लिए अपना पार्टनर बनाते हैं।


कहाँ है सांवरिया सेठ के यह तीन मंदिर :-

राजस्थान और मध्यप्रदेश के सीमा पर विश्व प्रसिद्ध सांवलिया सेठ का यह मंदिर चित्तोड़गढ़ में मंडफिया में पड़ते है | यहा सांवलिया सेठ के तीन मंदिर है |
चित्तौड़गढ़ से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांवलिया जी का मंदिर राजस्थान में बहुत प्रसिद्द है।
सांवरिया सेठ के तीन मंदिर :
१) प्राकट्य स्थल मंदिर बांगुड भादसोड़ा : यह मंदिर NH 76 पर पड़ता है | यहाँ कांच से बना शानदार मंदिर है | कृष्णा लीलाओं को कांच पर बहुत ही सुन्दर तरीके से उभारा गया है |
२) मुख्य मंदिर मणदपिया : यह यहा का सबसे मुख्य और भव्य मंदिर है | यह मंदिर भादसोड़ा चौराहे से 7 किमी की दुरी पर अन्दर की तरफ है | सफेद पत्थरो से बना यह भव्य मंदिर बहुत ही सुन्दर है |
३) प्राचीन मंदिर भादसोड़ा :यह मंदिर भादसोड़ा में स्थित है | यह मंदिर उदयपुर रोड पर भादसोड़ा चौराहे से 1.5 किमी की दुरी पर है |


 
जब सन्यासी नरसी भक्त को अपने बेटी नानी बाई का मायरा जोरो शोरो से भरना था तब उनकी लाज रखने के लिए उन्हें परम आराध्य देव श्री कृष्ण ने सांवर सेठ का वेश बनाकर नरसी जी को दर्शन दिए और उनके साथ ही मायरा भरने गये | वहा पहुँच कर उन्होंने शानदार मायरा भरा जो आज तक मिसाल बना हुआ है |
उन्ही सांवर सेठ के लिए यशार्थ यह सांवलिया सेठ का यह मंदिर बना है |
 
किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल है जिनकी वह पूजा किया करती थी । मीरा बाई संत महात्माओं की जमात में इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी।
ऐसी ही एक दयाराम नामक संत की एक जमात थी जिनके पास ये मुर्तिया थी।
बताया जाता है की जब औरंगजेब की मुग़ल सेना मंदिरो को तोड़ रही थी तो मेवाड़ राज्य में पहुचने पर मुग़ल सैनिको को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा तो संत दयाराम जी ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड- भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान ) में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद के पधरा (दबा) दिया।
फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम जी का देवलोकगमन हो गया ।
 
किवदंतियों के अनुसार कालान्तर में सन 1840 मे मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया की भादसोड़ा - बागूंड के छापर मे 4 मूर्तिया ज़मीन मे दबी हुई है, जब उस जगह पर खुदाई की गयी तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहा से एक जैसी 4 मूर्तिया प्रकट हुयी।
सभी मूर्तिया बहुत ही मनोहारी थी। देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फ़ैल गयी और आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पहुचने लगे।


 
फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जायी गयी, भादसोड़ा में सुथार जाति के अत्यंत ही प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में उदयपुर मेवाड राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है।


 
दूसरीं मझली मूर्ति को वही खुदाई की जगह स्थापित किया गया इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है ।
तीसरी सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जायी गयी जो उन्होंने अपने घर के परिण्डे में स्थापित करके पूजा आरम्भ कर दी ।
 
चौथी मूर्ति निकालते समय खण्डित हो गयी जिसे वापस उसी जगह पधरा दिया गया।
कालांतर में सभी जगह भव्य मंदिर बनते गए । तीनो मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फेली। आज भी दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ दर्शन करने आते हैं।












 

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